इस अजनबी सी दुनिया मे
इत्तेफ़ाक से ही शायद
कई मोड़ पे तुम हमे मिल गये l
रन्जिशो को सांसो मे दबाए
दबि हुई आवाज़ मे- कई बार तुम्हे
पुकारा भी l
दस्तक तो तुम्हारे दिल ने भी सुनी थी शायद
हा ! सुनी थी न?
पर जज़्बात उन आँखों से बयाँ ना हुए l
हमने कई बार - कभी रुक के
तो कभी मुड़ के
चोर नज़रों से तुम्हे जताया भी l
यकिनन छूती थी तुम्हे
हवाओ मे बहते हुए ये शब्द
पर जानकर भी अन्जान से रहे बने तुम l
वरना हैरानगी ने तो कम से कम
तुम्हारी नज़रों से मेरी नज़र तक का सफ़र