आपमें और मुझमें
कई परतो की दूरी सी है.
कुछ रेशम के धागो सी
तो कुछ रंगीन शामों की.
वो ग़लती से मेरा तुझको छू देना
ग़लती तो शायद ही थी!
तेरा मुस्कुराना भर ही काफ़ी था
धड़कनो को बे-लगाम करने के लिए.
उन हवाओ संग बहते हुए
मेरी ज़ुल्फो में कुछ तमन्नाए सी थी.
कुछ सैलाब सा था जो
गरज बरस के इंतेज़ार में बंजर सा रो रहा था.
तू आता है तो एक
सुकून सा महसूस होता है.
तू जाता है तो भी
सुकून सा ही महसूस होता है.
रूह को शायद
तेरे होने भर से ही...
एक लगाव सा कुछ हो गया है.
कई परतो की दूरी सी है.
कुछ रेशम के धागो सी
तो कुछ रंगीन शामों की.
वो ग़लती से मेरा तुझको छू देना
ग़लती तो शायद ही थी!
तेरा मुस्कुराना भर ही काफ़ी था
धड़कनो को बे-लगाम करने के लिए.
उन हवाओ संग बहते हुए
मेरी ज़ुल्फो में कुछ तमन्नाए सी थी.
कुछ सैलाब सा था जो
गरज बरस के इंतेज़ार में बंजर सा रो रहा था.
तू आता है तो एक
सुकून सा महसूस होता है.
तू जाता है तो भी
सुकून सा ही महसूस होता है.
रूह को शायद
तेरे होने भर से ही...
एक लगाव सा कुछ हो गया है.