The caricatures on ones walls are not always the reflection of their souls. There are layers of layer in between and by the time the reflected images hold your attention, they are all contorted.
Tuesday, July 24, 2012
Saturday, July 7, 2012
To a certain Someone-
आपमें और मुझमें
कई परतो की दूरी सी है.
कुछ रेशम के धागो सी
तो कुछ रंगीन शामों की.
वो ग़लती से मेरा तुझको छू देना
ग़लती तो शायद ही थी!
तेरा मुस्कुराना भर ही काफ़ी था
धड़कनो को बे-लगाम करने के लिए.
उन हवाओ संग बहते हुए
मेरी ज़ुल्फो में कुछ तमन्नाए सी थी.
कुछ सैलाब सा था जो
गरज बरस के इंतेज़ार में बंजर सा रो रहा था.
तू आता है तो एक
सुकून सा महसूस होता है.
तू जाता है तो भी
सुकून सा ही महसूस होता है.
रूह को शायद
तेरे होने भर से ही...
एक लगाव सा कुछ हो गया है.
कई परतो की दूरी सी है.
कुछ रेशम के धागो सी
तो कुछ रंगीन शामों की.
वो ग़लती से मेरा तुझको छू देना
ग़लती तो शायद ही थी!
तेरा मुस्कुराना भर ही काफ़ी था
धड़कनो को बे-लगाम करने के लिए.
उन हवाओ संग बहते हुए
मेरी ज़ुल्फो में कुछ तमन्नाए सी थी.
कुछ सैलाब सा था जो
गरज बरस के इंतेज़ार में बंजर सा रो रहा था.
तू आता है तो एक
सुकून सा महसूस होता है.
तू जाता है तो भी
सुकून सा ही महसूस होता है.
रूह को शायद
तेरे होने भर से ही...
एक लगाव सा कुछ हो गया है.
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